Navratri 2016 Dates Information
➧ Chaitra Navratri 2016 Dates Chaitra Navratri: April 8, 2016 to April 16, 2016
➧ Sharad Navratri 2016 Dates Sharad Navratri: October 1, 2016 to October 9, 2016
VINDHYAVASINI DHAM (विंध्यवासिनी धाम)
पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है। विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है। विंध्याचल पर्वत न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा स्थल है बल्कि संस्कृति का अद्भुत अध्याय भी है। इसकी माटी की गोद में पुराणों के विश्वास और अतीत के अध्याय जुडे हुए हैं।
त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिध्दि प्राप्त होती है। विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिध्दि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिध्द पीठ केरूप में विख्यात है। आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनाथयों का आना-जाना लगा रहता है। चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां देश के कोने-कोने से लोगों का का समूह जुटता है। ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं। इसकी पुष्टि मार्कंडेय पुराण श्री दुर्गा सप्तशती की कथा से भी होती है, जिसमें सृष्टि के प्रारंभ काल की कुछ इस प्रकार से चर्चा है- सृजन की आरंभिक अवस्था में संपूर्ण रूप से सर्वत्र जल ही विमान था। शेषमयी नारायण निद्रा में लीन थे। भगवान के नाभि कमल पर वृध्द प्रजापति आत्मचिंतन में मग्न थे। तभी विष्णु के कर्ण रंध्र से दो अतिबली असुरों का प्रादुर्भाव हुआ। ये ब्रह्मा को देखकर उनका वध करने के लिए दौड़े। ब्रह्मा को अपना अनिष्ट निकट 1दिखाई देने लगा। असुरों से लड़ना रजोगुणी ब्रह्मा के लिए संभव नहीं था। यह कार्य श्री विष्णु ही कर सकते थे, जो निद्रा के वशीभूत थे। ऐसे में ब्रह्मा को भगवती महामाया की स्तुति करनी पड़ी, तब जाकर उनके ऊपर आया संकट दूर हो सका।
मां के पताका (ध्वज) का महत्व
मान्यता है कि शारदीय व वासंतिक नवरात्र में मां भगवती नौ दिनों तक मंदिर की छत के ऊपर पताका में ही विराजमान रहती हैं। सोने के इस ध्वज की विशेषता यह है कि यह सूर्य चंद्र पताकिनी के रूप में जाना जाता है। यह निशान सिर्फ मां विंध्यवासिनी देवी के पताका में ही होता है।
अष्टभुजी देवी
यंत्र के पश्चिम कोण पर उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए अष्टभुजी देवी विराजमान हैं। अपनी अष्टभुजाओं से सब कामनाओं को साधती हुई वह संपूर्ण दिशाओं में स्थित भक्तों की आठ भुजाओं से रक्षा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वहां अष्टदल कमल आच्छादित है, जिसके ऊपर सोलह दल हैं। उसके बाद चौबीस दल हैं। बीच में एक बिंदु है जिसमें ब्रह्मरूप से महादेवी अष्टभुजी निवास करती हैं।
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